Husband-Wife Relationship | एक असंतुष्ट पति - पत्नी विध्वंस है | Harshvardhan Jain | 7690030010
Harshvardhan Jain Harshvardhan Jain
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 Published On Nov 21, 2023

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Trust becomes the guarantee of victory.  If you want to see the lotus of the future blooming, then tear off the cover of your intolerant mentality and prepare to welcome the sunrise of the new future.

अधिकतर लोग जीवन को अमीरी और गरीबी के तराजू में तोलते हैं और स्वर्ग जैसे जीवन की महत्वाकांक्षा रखते हैं। सुखी जीवन का अमीरी या गरीबी से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं होता है। लोग जिस स्वर्ग की तलाश में जीवन बिता देते हैं, वही स्वर्ग उस घर में विराजमान होता है जिसमें सभी सदस्य विश्वास के सागर में स्नान करते हैं। एक सुखी परिवार स्वर्ग की झलक दिखाता है। जिस परिवार में परस्पर सहयोग, सम्मान और स्वावलंबन की भावना कूट-कूट कर भरी होती है, उस परिवार में स्वर्ग से भी अधिक सुख और समृद्धि के मधुर गीत सुनाई देते हैं। जिस परिवार का मूल आधार आत्मनिर्भरता और अनुशासन होता है, उस परिवार में उन्नति की गूंज दहाड़ते हुए शेर के समान सम्पूर्ण विश्व को उत्साहवर्धक संदेश देती है।

जिस परिवार में एक दूसरे की सीमाओं का अतिक्रमण किया जाता है, एक दूसरे के विश्वास को ठेस पहुंचाई जाती है, एक दूसरे के आत्मसम्मान को कुचलने की आदत को बढ़ावा दिया जाता है और निराशावादी मानसिकता का विस्तार किया जाता है, उस परिवार में भविष्य के आनंदोत्सव का सूर्यास्त होना निश्चित हो जाता है। जिस परिवार में पति-पत्नी एक दूसरे पर संदेह और स्पर्धा की दीवार बना देते हैं, उस परिवार की सीमा रेखा संकुचित हो जाती है और बच्चे दिशाहीन और अर्थहीन जीवन जीने के लिए विवश हो जाते हैं। असंतुष्ट दांपत्य जीवन का परिणाम अनिर्णय, असमर्थता और असफलता का वातावरण होता है। ऐसे परिवारों का माहौल निराशा और परिस्थितिजन्य दुखों को आमंत्रित करता है।

संदेह के जलाशय में अनंत सामर्थ्य के कमल नहीं खिलते हैं। अधिकतर लोग सफलता के आसमान में उड़ान नहीं भर पाते हैं क्योंकि उनके परिवार की जड़ों में उन्नति के बीजों का अभाव होता है और उनके बगीचे में सफलता के पौधे प्राथमिकता नहीं पाते हैं। सुख का माहौल बनाने के लिए सुखद भावनाओं का अवसर होना आवश्यक होता है क्योंकि यही भावनाएं व्यक्ति के जीवन को विशेष अवसर प्रदान करती हैं। ऐसे परिवारों के बच्चे निराशावादी मानसिकता के भंवर जाल में फंसे रह जाते हैं और भविष्य के सूर्योदय की झलक देखने से वंचित रह जाते हैं। परिवार प्रथम पाठशाला होती है। परिवार जैसा पाठ बच्चों को पढ़ाता है, वही अनादि परंपरा बन जाती है। अधिकतर लोग अपनी परंपरागत मानसिकता का बोझ ढो रहे होते हैं। इस मानसिकता के बोझ को उतारकर सफल मानसिकता का मुकुट पहनने की आदत विकसित करने की आवश्यकता है। विश्वास जीत की गारंटी बनता है। यदि भविष्य के कमल को खिलते हुए देखना चाहते हो, तो अपनी असहनशील मानसिकता रूपी छप्पर को फाड़ दो और नए भविष्य के सूर्योदय का स्वागत करने की तैयारी करो।

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